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धर्मसम्राट श्री करपात्री जी महाराज🚩 | United States America (US)
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जानिए...आखिर क्यों नकली शंकराचार्य खड़े करने का प्रपंच रचा जाता है
🚩🚩🚩 धर्म vs. अधर्म 🚩🚩🚩

शंकरचार्य vs. आरएसएस - संघ - विहिप

1987-88 में एक बार चारों शंकराचार्यों को विश्व हिन्दू परिषद द्वारा निमन्त्रण दिया गया अपनी एक धर्म सभा हेतु जो कि विहिप द्वारा आयोजित एक धर्म मंच था ... वाराणसी या प्रयाग में ।

चारों शंकराचार्यों को दूरभाष द्वारा सूचित किया गया सबने सहमति दे दी ... परन्तु जब प्रिंटेड निमन्त्रण पत्र पहुंचा तो सभी शंकराचार्यों को अपमानित महसूस हुआ।

कारण था उस धर्म मंच का मुख्य वक्ता बनाया गया दलाई लामा को जिसके बारे में शंकरचार्यो को अवगत नही करवाया गया, कि वामपंथी बौद्ध मत के दलाई लामा के मंच की अध्यक्षता करने के बारे में ।

वह दलाई लामा जो बौद्धों के वामपंथी पन्थ का प्रमुख है दक्षिणपंथ का भी नही ।

और वह बौद्ध मत जिसको समाप्त करने में आदिगुरु शंकराचार्य जी ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया, जिन्होंने सनातम धर्म को बड़ी बड़ी हानियाँ पहुंचाई थीं।

ततपश्चात सभी शंकराचार्यों ने आपस में वार्तालाप कर आपसी सहमति से विहिप के धर्म-मंच में न जाने का निर्णय लिया ।

कोई भी शंकराचार्य नही गए और सबने boycott कर दिया ।

RSS-VHP ने इज्जत बचाने हेतु चार नकली शंकराचार्यों को मंच पर बिठा लिया ।

और फिर आरएसएस ने आरम्भ किया नकली शंकरचार्यो की फौज बनाने का काम जिसके तहत अब तक कोई 450 से अधिक नकली शंकराचार्य खड़े किये जा चुके हैं।

आप स्वयं विचार करें...

इस्लामी आक्रांताओं ने कभी प्रत्यक्ष रूप से शंकराचार्य परम्परा के साथ टकराव नही किया जबकि नागा अखाड़े हिन्दू राजाओं की और से युद्धों में भाग लेते थे तब भी ।

अंग्रेजों ने स्वयम् कभी शंकराचार्य परम्परा से छेड़छाड़ नहीं की ।

परन्तु अपनी दूकान का एकछत्र राज स्थापित करने हेतु ...आज संघ द्वारा स्थापित देश में लगभग 450 से अधिक नकली स्वयंभू शंकराचार्य हैं ।

आश्चर्य तो तब होता है जब संघ का एक सठियाया बुजुर्ग साईं बाबा प्रकरण में शंकराचार्य को धर्म के विषयों में हस्तक्षेप न करने का बयान दे डालता है, अरे भाई धर्म प्रदत्त विषयों के सन्दर्भ में शंकरचार्यो द्वारा नही बोला जाएगा तो क्या पोप आकर बोलेगा?

स्वयं वाजपेयी जी एक नकली शंकराचार्य को अमेरिका लेकर जाते हैं और उसका पुरी पीठ के शंकराचार्य के रूप में परिचय करवाते हैं सबसे ...जबकि उसी यात्रा की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में एक पत्रकार ने पूछ लिया था कि पुरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद तो इस समय भारत में ही हैं ।

वहीं एक दण्डी स्वामी को विदेश यात्रा सदैव निषेध रहती हैं।
ऐसे कई नकली शंकरचार्य हैं जो विदेश यात्रा करते हैं, व्यापारिक प्रतिष्ठान आदि चला रहे हैं।

जुलाई 2014 में पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी दिल्ली पधारे, मोहन भागवत उनसे मिलने पहुंचे, स्थान था धर्मसंघ कार्यालय, शंकरचार्य मार्ग, सिविल लाइन्स, दिल्ली।

स्वामिश्री: निश्चलानंद सरस्वती जी ने स्पष्ट कहा कि आपने हमारे सामने 50 नकली शङ्कराचार्य खड़े किये हैं... यदि हमने 4 मोहन भागवत खड़े कर दिए तो संघ नही चला पाओगे ।

यह है हिंदुत्व ??

शासन तंत्र द्वारा जब कुंभ मेलों का आयोजन होता है तो सबसे अधिक दुर्व्यवहार और अपमानित करने वाले प्रपन्च शंकरचार्यो के विरुद्ध ही प्रायोजित होते हैं।

उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी को व्हीचेयर हेतु दो घन्टे रेलवे स्टेशन पर प्रतीक्षा करवाई गई, जबकि यह तब हुआ जब इस मांग के हेतु पूर्व सूचना लिखित में दे दी गई थी।

शंकरचार्य श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी के विरुद्ध वासुदेवानन्द सरस्वती जो संघ द्वारा ही समर्थन किया जाता है।

संघ, और विहिप ने अपनी विविध योजनाओं हेतु शंकराचार्य परम्परा के अधीन अखाड़ा परम्परा के पीठाधीश्वरों, अखाड़ा प्रमुखों, महामंडलेश्वरों को भी धीरे धीरे पद, धन और अन्य प्रपंचो से ब्लैकमेल करके अपने पाले में कर लिया है...

किसलिए... केवल शंकरचार्यो को शक्तिहीन करने हेतु ।

उनकी और से कोई बोलेगा ही नही।

अब चाहे काशी के मंदिर टूट रहे हों या कोई भी धर्म विरुद्ध कार्य हो रहा हो, राजनैतिक दलों ने जिन सन्तो, महामण्डलेश्वरों को अपने पाले में किया है उनके मुंह मे तो दही जमा दी गई है।

वह कुछ नही बोलेंगे।

इसके विपरीत राजनैतिक दलों के सन्त और महामण्डलेश्वरों द्वारा काशी के मंदिरों के विध्वंस को भी जायज ठहराया जाता है।

रावण दहन को प्रतिबन्ध करने की मांग अधोक्षजानन्द द्वारा होती है।

साईं बाबा का समर्थन वासुदेवानन्द, ओंकारानंद आदि द्वारा किया जाता है।

श्रीमदभगवद्गीता के श्लोकों को मनमाने ढंग से अड़गड़ानंद द्वारा प्रकाशित किया जाता है।

नकली शंकरचार्यो को अपने कार्यो में बुलाकर उन्हें शंकराचार्य कहलवाकर पुजवाया जाता है।

नकली शंकरचार्यों के कार्यक्रमो में संघ के प्रचारक, संघ प्रमुख आदि जाकर अपना समर्थन देते हैं।

जानिए...आखिर क्यों नकली शंकराचार्य खड़े करने का प्रपंच रचा जाता है
🚩🚩🚩 धर्म vs. अधर्म 🚩🚩🚩

शंकरचार्य vs. आरएसएस - संघ - विहिप

1987-88 में एक बार चारों शंकराचार्यों को विश्व हिन्दू परिषद द्वारा निमन्त्रण दिया गया अपनी एक धर्म सभा हेतु जो कि विहिप द्वारा आयोजित एक धर्म मंच था ... वाराणसी या प्रयाग में ।

चारों शंकराचार्यों को दूरभाष द्वारा सूचित किया गया सबने सहमति दे दी ... परन्तु जब प्रिंटेड निमन्त्रण पत्र पहुंचा तो सभी शंकराचार्यों को अपमानित महसूस हुआ।

कारण था उस धर्म मंच का मुख्य वक्ता बनाया गया दलाई लामा को जिसके बारे में शंकरचार्यो को अवगत नही करवाया गया, कि वामपंथी बौद्ध मत के दलाई लामा के मंच की अध्यक्षता करने के बारे में ।

वह दलाई लामा जो बौद्धों के वामपंथी पन्थ का प्रमुख है दक्षिणपंथ का भी नही ।

और वह बौद्ध मत जिसको समाप्त करने में आदिगुरु शंकराचार्य जी ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया, जिन्होंने सनातम धर्म को बड़ी बड़ी हानियाँ पहुंचाई थीं।

ततपश्चात सभी शंकराचार्यों ने आपस में वार्तालाप कर आपसी सहमति से विहिप के धर्म-मंच में न जाने का निर्णय लिया ।

कोई भी शंकराचार्य नही गए और सबने boycott कर दिया ।

RSS-VHP ने इज्जत बचाने हेतु चार नकली शंकराचार्यों को मंच पर बिठा लिया ।

और फिर आरएसएस ने आरम्भ किया नकली शंकरचार्यो की फौज बनाने का काम जिसके तहत अब तक कोई 450 से अधिक नकली शंकराचार्य खड़े किये जा चुके हैं।

आप स्वयं विचार करें...

इस्लामी आक्रांताओं ने कभी प्रत्यक्ष रूप से शंकराचार्य परम्परा के साथ टकराव नही किया जबकि नागा अखाड़े हिन्दू राजाओं की और से युद्धों में भाग लेते थे तब भी ।

अंग्रेजों ने स्वयम् कभी शंकराचार्य परम्परा से छेड़छाड़ नहीं की ।

परन्तु अपनी दूकान का एकछत्र राज स्थापित करने हेतु ...आज संघ द्वारा स्थापित देश में लगभग 450 से अधिक नकली स्वयंभू शंकराचार्य हैं ।

आश्चर्य तो तब होता है जब संघ का एक सठियाया बुजुर्ग साईं बाबा प्रकरण में शंकराचार्य को धर्म के विषयों में हस्तक्षेप न करने का बयान दे डालता है, अरे भाई धर्म प्रदत्त विषयों के सन्दर्भ में शंकरचार्यो द्वारा नही बोला जाएगा तो क्या पोप आकर बोलेगा?

स्वयं वाजपेयी जी एक नकली शंकराचार्य को अमेरिका लेकर जाते हैं और उसका पुरी पीठ के शंकराचार्य के रूप में परिचय करवाते हैं सबसे ...जबकि उसी यात्रा की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में एक पत्रकार ने पूछ लिया था कि पुरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद तो इस समय भारत में ही हैं ।

वहीं एक दण्डी स्वामी को विदेश यात्रा सदैव निषेध रहती हैं।
ऐसे कई नकली शंकरचार्य हैं जो विदेश यात्रा करते हैं, व्यापारिक प्रतिष्ठान आदि चला रहे हैं।

जुलाई 2014 में पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी दिल्ली पधारे, मोहन भागवत उनसे मिलने पहुंचे, स्थान था धर्मसंघ कार्यालय, शंकरचार्य मार्ग, सिविल लाइन्स, दिल्ली।

स्वामिश्री: निश्चलानंद सरस्वती जी ने स्पष्ट कहा कि आपने हमारे सामने 50 नकली शङ्कराचार्य खड़े किये हैं... यदि हमने 4 मोहन भागवत खड़े कर दिए तो संघ नही चला पाओगे ।

यह है हिंदुत्व ??

शासन तंत्र द्वारा जब कुंभ मेलों का आयोजन होता है तो सबसे अधिक दुर्व्यवहार और अपमानित करने वाले प्रपन्च शंकरचार्यो के विरुद्ध ही प्रायोजित होते हैं।

उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी को व्हीचेयर हेतु दो घन्टे रेलवे स्टेशन पर प्रतीक्षा करवाई गई, जबकि यह तब हुआ जब इस मांग के हेतु पूर्व सूचना लिखित में दे दी गई थी।

शंकरचार्य श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी के विरुद्ध वासुदेवानन्द सरस्वती जो संघ द्वारा ही समर्थन किया जाता है।

संघ, और विहिप ने अपनी विविध योजनाओं हेतु शंकराचार्य परम्परा के अधीन अखाड़ा परम्परा के पीठाधीश्वरों, अखाड़ा प्रमुखों, महामंडलेश्वरों को भी धीरे धीरे पद, धन और अन्य प्रपंचो से ब्लैकमेल करके अपने पाले में कर लिया है...

किसलिए... केवल शंकरचार्यो को शक्तिहीन करने हेतु ।

उनकी और से कोई बोलेगा ही नही।

अब चाहे काशी के मंदिर टूट रहे हों या कोई भी धर्म विरुद्ध कार्य हो रहा हो, राजनैतिक दलों ने जिन सन्तो, महामण्डलेश्वरों को अपने पाले में किया है उनके मुंह मे तो दही जमा दी गई है।

वह कुछ नही बोलेंगे।

इसके विपरीत राजनैतिक दलों के सन्त और महामण्डलेश्वरों द्वारा काशी के मंदिरों के विध्वंस को भी जायज ठहराया जाता है।

रावण दहन को प्रतिबन्ध करने की मांग अधोक्षजानन्द द्वारा होती है।

साईं बाबा का समर्थन वासुदेवानन्द, ओंकारानंद आदि द्वारा किया जाता है।

श्रीमदभगवद्गीता के श्लोकों को मनमाने ढंग से अड़गड़ानंद द्वारा प्रकाशित किया जाता है।

नकली शंकरचार्यो को अपने कार्यो में बुलाकर उन्हें शंकराचार्य कहलवाकर पुजवाया जाता है।

नकली शंकरचार्यों के कार्यक्रमो में संघ के प्रचारक, संघ प्रमुख आदि जाकर अपना समर्थन देते हैं।


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