‘लमही ख़बर पहुँची। बिरादरीवाले जुटने लगे।
अरथी बनी। ग्यारह बजते-बजते बीस-पचीस आदमी किसी गुमनाम आदमी की लाश लेकर मणिकर्णिका की ओर चले।
रास्ते में एक राह चलते ने दूसरे से पूछा—के रहल ?
दूसरे ने जवाब दिया—कोई मास्टर था।’
[क़लम का सिपाही, पृष्ठ-संख्या : 612, हंस प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण : प्रेमचंद स्मृति दिवस, 1962, नवीन संस्करण : दिसंबर, 1976]
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