*Srila Bhaktivinoda Thakura Disappearance Day - Fasting till noon*
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_नमो भक्तिविनोदय सच्चिदानन्दनामिने ।_
_गौरशक्ति स्वरूपाय रूपानुगवरायते ।।_
श्रील भक्ति विनोद ठाकुर हमारी वैष्णव परंपरा के बहुत महान आचार्य हुए हैं। इनका जन्म 2 सितंबर, 1838 में उलाग्राम (वीरनगर), नदिया में हुआ था।
यूं तो ये गृहस्थ थे, किंतु इनका जीवन अत्यंत संयमित एवं कठिन तपस्या से भरा हुआ था। ये जगन्नाथ पुरी के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट थे (जो कि अंग्रेजों के राज्य में किसी भी भारतीय को दिए जाने वाला सर्वोच्च पद था)।
_अंग्रेजी सरकार इनके कार्य से इतनी खुश थी कि उन्होंने विशेष रूप से इनके घर तक रेलवे लाइन बिछाई थी जो केवल उनके निजी इस्तेमाल के लिए थी, जिस में बैठकर वे दफ्तर जाया करते थे।_
*उनका दैनिक कार्यक्रम इस प्रकार था ―*
7:30-8:00 PM – विश्राम
10:00 PM-4:00 AM – ग्रंथ लेखन
4:00-4:30 – विश्राम
4:30-7:00 – "हरे कृष्ण महामंत्र" जप
7:00-7:30 – पत्राचार
7:30 – अध्ययन
8:30 – अतिथियों का स्वागत या अध्ययन करते रहना
9:30-9:45 – विश्राम
9:45-10:00– स्नान, प्रसाद सेवन (आधा लिटर दूध, 2 रोटी, फल)
10:00-1:00 PM – कोर्ट का कार्य
1:00-2:00 – अल्प आहार
2:00-5:00 – कोर्ट का कार्य
5:00-7:00 – संस्कृत ग्रंथ अनुवाद कार्य
7:00-7:30 PM – स्नान, प्रसाद सेवन (भात, 2 रोटी, आधा लीटर दूध)
वे कोट पैंट डालकर, तुलसी की कंठी माला पहने, *वैष्णव तिलक लगाकर दफ्तर जाया करते थे* और बहुत जल्दी निर्णय लिया करते थे। कोर्ट के अंदर 1 दिन में कई सारे निर्णय दे देते थे (जो कि हमेशा सही होते थे)।
*भक्ति विनोद ठाकुर के कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान इस प्रकार हैं :*
# उन्होंने 100 से भी अधिक ग्रंथों का निर्माण किया (जिनमें से कई ग्रंथ इन्होंने विदेशों में भी भेजें)।
# उन्होंने बहुत से संस्कृत ग्रंथों का बांग्ला भाषा में अनुवाद किया।
# उन्होने मायापुर के अंदर भगवान *श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु* (जो कि भगवान कृष्ण के ही कलयुग में हुए अवतार हैं) कि प्रकट स्थली की खोज की।
# उन्होंने बहुत से(लगभग 13) *अप संप्रदायों* का पर्दाफाश किया (अप संप्रदाय का अर्थ होता है ऐसे लोग जो बाहर से भक्त होने का दिखावा करते हैं किंतु अत्यंत विषई और कामी होते हैं)
# उन्होंने कई सारे नकली साधुओं को भी पकड़वाया
...क्योंकि इनके कार्य वृंदावन के षड् गोस्वामी गण जैसे ही थे इसीलिए *इन्हें सातवां गोस्वामी भी कहा जाता है।*
जीवों की इस दुरावस्था को देखकर उदारता के लीलामय विग्रह श्रीमन् महाप्रभु जी का मन दया से भर आया और उन्होंने जीवों के आत्यंतिक मंगल के लिए अपने निजजन श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी को जगत में भेजा। ठाकुर श्रील भक्ति विनोद जी ने अपनी अलौकिक शक्ति से विभिन्न भाषाओं में सौ से भी अधिक ग्रंथ लिखकर शुद्ध भक्ति सिद्धांतों के विरुद्ध मतों का खंडन किया और ऐसा करते हुए उन्होने श्रीमन् महाप्रभु जी की शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ तत्व स्थापित किया।
इन्होंने भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में कई भजन भी लिखे हैं। (ये वैष्णव गीत आज भी भक्तों को श्री कृष्ण से अनुराग और संसार की वास्तविकता का बोध कराते हैं, इन्होंने पहला गीत 7 वर्ष की आयु में ही लिख दिया था)।
जीवों की दुरावस्था को देखकर उदारता के लीलामय विग्रह श्रीमन् महाप्रभु जी का मन दया से भर आया और उन्होंने जीवों के आत्यंतिक मंगल के लिए अपने निजजन श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी को जगत में भेजा। ठाकुर श्रील भक्ति विनोद जी ने अपनी अलौकिक शक्ति से विभिन्न भाषाओं में सौ से भी अधिक ग्रंथ लिखकर शुद्ध भक्ति सिद्धांतों के विरुद्ध मतों का खंडन किया और ऐसा करते हुए उन्होने श्रीमन् महाप्रभु जी की शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ तत्व स्थापित किया।
*श्रील भक्ति विनोद ठाकुर महाराज की जय!*
*हरे कृष्ण*
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