कोई दिल से आपका अपना होता है, कोई मजबूरीवश होता है; कोई इसलिए आपका अनुसरण करता है कि उसे आप जैसा बनना होता है, औऱ कोई इसलिए कि आप ग़लती करो, औऱ वो आप पर प्रहार करें; कोई दिल से आपसे जुड़ा हुआ है, औऱ कई स्वार्थसिद्धि के ख़ातिर; कोई आपका शुभचिंतक होता है, औऱ कोई शुभचिंतक बना हुआ होता है; कोई मन से आपका होता है, कोई मस्तिष्क से आपका होता है; कोई खुला विरोधी होता है, उसका सम्मान करना चाहिए, कोई छुपा होता है, उसको प्रेम औऱ स्नेह देना चाहिए।
अतः जरूरत है हमें दोनों श्रेणियों को जानने की औऱ उनको पहचानने की कि कौन वास्तविक है, और कौन वास्तविक बना हुआ है...औऱ यह आत्मज्ञान स्वयं तक ही रखना चाहिए, प्रकट नहीं करना चाहिए....❣️
✍️ गणपत सिंह राजपुरोहित
>>Click here to continue<<