मंजिल की तरफ़ जब पहला क़दम बढ़ाते है... तब अनेक प्रश्न मन मस्तिष्क में उपजते हैं... कभी खुद की काबिलियत पर संदेह होता है तो कभी मंजिल के रास्तों पर सन्देह.... दरअसल पहला क़दम सबसे मुश्किल भरा होता है... तदुपरांत मंजिल और उसकी डगर की कठिनता के अनुरूप जब राही अपने आप को झोंक देता है, तब मस्तिष्क में उपजे वे सवालात , स्वतः समाप्त होते जाते हैं, और उन प्रश्नों का स्थान अब मंज़िल तक पहुँचने की तरकीबें, तकनीकियां व तरीक़े ले लेते हैं।
यात्रा आरम्भ करने वालों की तादाद लाखों में होती है... मंजिल को मुकम्मल चंद राही करते है....ये चंद वो हैं, जो अपनी धुन में रंगे रहते है, बाह्य कारकों, निरर्थक प्रश्नों , अनावश्यक संशयों के चक्रव्यूह में घिरे नहीं रहते... ये वो होते हैं, जो रिस्क लेना जानते हैं, ये वो होते हैं जो औरों से एक क़दम आगे होते है... ये वो होते हैं जो हँसते हँसते दुनियां का सामना कर लेते है, घुटने नहीं टेकते...बाक़ी सफल लोग, अलग ग्रह से नहीं आये, हमारे बीच के ही हैं।👍
✍️ गणपत सिंह राजपुरोहित
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