मैं उन औरतों को
जो कुएँ में कूदकर या चिता में जलकर मरी हैं,
फिर से ज़िंदा करूँगा,
और उनके बयानात को
दुबारा क़लमबंद करूँगा,
कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया!
कि कहीं कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया!
कि कहीं कोई भूल तो नहीं हुई!
क्योंकि मैं उन औरतों के बारे में जानता हूँ
जो अपने एक बित्ते के आँगन में
अपनी सात बित्ते की देह को
ता-ज़िंदगी समोए रही और
कभी भूलकर बाहर की तरफ़ झाँका भी नहीं।
और जब वह बाहर निकली तो
औरत नहीं, उसकी लाश निकली।
जो खुले में पसर गई है,
माँ मेदिनी की तरह।
एक औरत की लाश धरती माता
की तरह होती है दोस्तो!
जो खुले में फैल जाती है,
थानों से लेकर अदालतों तक।
मैं देख रहा हूँ कि
जुल्म के सारे सबूतों को मिटाया जा रहा है।
चंदन चर्चित मस्तक को उठाए हुए पुरोहित,
और तमग़ों से लैस सीनों को फुलाए हुए सैनिक,
महाराज की जय बोल रहे हैं।
वे महाराज जो मर चुके हैं,
और महारानियाँ सती होने की तैयारियाँ कर रही हैं।
और जब महारानियाँ नहीं रहेंगी,
तो नौकरानियाँ क्या करेंगी?
इसलिए वे भी तैयारियाँ कर रही हैं।
मुझे महारानियों से ज़्यादा चिंता
नौकरानियों की होती है,
जिनके पति ज़िंदा हैं और
बेचारे रो रहे हैं।
कितना ख़राब लगता है एक औरत को
अपने रोते हुए पति को छोड़कर मरना,
जबकि मर्दों को
रोती हुई औरतों को मारना भी
ख़राब नहीं लगता।
औरतें रोती जाती हैं,
मरद मारते जाते हैं।
औरतें और ज़ोर से रोती हैं,
मरद और ज़ोर से मारते हैं।
औरतें ख़ूब ज़ोर से रोती हैं,
मरद इतने ज़ोर से मारते हैं कि
वे मर जती हैं।
इतिहास में वह पहली औरत कौन थी,
जिसे सबसे पहले जलाया गया,
मैं नहीं जानता,
लेकिन जो भी रही होगी,
मेरी माँ रही होगी।
लेकिन मेरी चिंता यह है कि
भविष्य में वह आख़िरी औरत कौन होगी,
जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा,
मैं नहीं जानता,
लेकिन जो भी होगी
मेरी बेटी होगी,
और मैं ये नहीं होने दूँगा।
-रमाशंकर यादव
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