– इजराइल ने 13 जून 2025 को ईरान के ‘परमाणु कार्यक्रम’ से जुड़े ठिकानों पर हमला किया था।
– इसके बाद ईरान ने जवाबी कार्रवाई में इजराइल पर हमला किया।
– इसके बाद से दोनों देशों के बीच संघर्ष जारी है और यह बढ़ता जा रहा है।
ईरान से कैसे लौटे भारतीय छात्र?
– ईरान के अलग-अलग शहरों से भारतीय छात्र आर्मेनिया से लगे नॉरदुज बॉर्डर पहुंचे। यहां से इन्हें बस से आर्मेनिया के येरेवन एयरपोर्ट ले जाया गया। इसके बाद इन छात्रों को हवाई रूट से भारत लाया जा रहा है।
– पहले चरण में 110 भारतीय छात्रों को ईरान से सड़क मार्ग द्वारा आर्मेनिया, उसके बाद वहां से 18 जून 2025 को एक विशेष उड़ान के जरिए उन्हें नई दिल्ली लाया गया।
ईरान से भारतीय छात्रों को सीधे क्यों नहीं लाया जा रहा?
– ईरान के ज्यादातर इंटरनेशनल एयरपोर्ट इस समय नागरिक उड़ानों के लिए बंद हैं। युद्ध जैसे हालात की वजह से वहां से फ्लाइट उड़ाना सुरक्षित नहीं है।
– ईरान के कई इलाकों में इजराइली हमले हो चुके हैं। ऐसे में फ्लाइट्स पर भी हमले का खतरा बना रहता है।
– सीधे ईरान से भारतीय एयरलाइंस को भेजना काफी जोखिम भरा है। इसके लिए ईरान की इजाजत के साथ-साथ मजबूत सुरक्षा इंतजाम भी चाहिए होंगे, जो युद्ध की स्थिति में संभव नहीं हैं।
भारत ने आर्मेनिया को ही क्यूं चुना?
– ईरान का बॉर्डर 7 देशों से लगता है। ये देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, अजरबैजान, आर्मेनिया, तुर्किये और इराक हैं। इसके अलावा समुद्री सीमा ओमान के साथ है।
– आर्मेनिया का बॉर्डर ईरान के प्रमुख शहरों से कम दूरी पर है। आर्मेनिया के साथ भारत के संबंध काफी अच्छे हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा समझौते भी हुए हैं।
– आर्मेनिया राजनीतिक रूप से स्थिर है और भारत से उसके दोस्ताना संबंध हैं। वहां से फ्लाइट ऑपरेशन तेजी से संभव है, क्योंकि येरेवन एयरपोर्ट पूरी तरह चालू है।
– ईरान और आर्मेनिया के बीच फिलहाल कोई सीमा विवाद या सैन्य तनाव नहीं है।
– दूसरी तरफ ईरान का पूर्वी पड़ोसी पाकिस्तान है। पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते ऑपरेशन सिंदूर के बाद और उसके पहले से ही तनावपूर्ण हैं। ऐसे में भारत के पास पाकिस्तान के रास्ते छात्रों को लाने का विकल्प नहीं है।
– इराक पहले से ही ईरान के साथ चल रहे तनाव में शामिल है। कई बार इजराइल ने इराक में भी ईरानी ठिकानों को निशाना बनाया है। इसलिए वहां से गुजरना खतरे से भरा हो सकता था।
– हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अजरबैजान खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में आया था। उसने भारत की कार्रवाई की निंदा भी की थी। ऐसे में भारत उसकी मदद नहीं लेगा।
– तुर्किये भले ही स्थिर देश है, लेकिन ईरान से सड़क के जरिए वहां तक पहुंचना काफी लंबा है। हाल ही में भारत और तुर्किये के बीच तनातनी देखने को मिली है। दरअसल तुर्किये ने भी ऑपरेशन सिंदूर की निंदा करते हुए खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था।
कुछ रेस्क्यू अभियान के नाम
– ऑपरेशन इंद्रावती (वर्ष 2024) : हैती देश में क्रिमिनल गैंग की हिंसा के दौरान
– ऑपरेशन अजय (वर्ष 2023) : हमास – इजरायल युद्ध के दौरान
– ऑपरेशन कावेरी (वर्ष 2023) : सूडान में गृहयुद्ध के दौरान
– ऑपरेशन गंगा (वर्ष 2022) : यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद
– ऑपरेशन राहत (वर्ष 2015) : यमन में संघर्ष के दौरान
अन्य राहत अभियान
– जापान: वर्ष 2011 की सुनामी में NDRF टीम और राहत सामग्री भेजी।
– म्यांमार: वर्ष 2008 में चक्रवात नरगिस के कारण मदद भेजी।
– संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 2005 में हरिकेन कैटरीना चक्रवात पीड़ितों को राहत सामग्री भेजी।
भारत ने किन देशों के लिए आपदा राहत अभियान चलाए?
– ऑपरेशन ब्रह्मा : 2025 में म्यांमार में भूकंप के बाद राहत अभियान
– ऑपरेशन दोस्त : वर्ष 2023 में तुर्किये में भूकंप के बाद राहत अभियान
– ऑपरेशन मैत्री : वर्ष 2015 : नेपाल में भूकंप के बाद राहत अभियान
– ऑपरेशन रेनबो : श्रीलंका में वर्ष 2004 में आयी सुनामी के बाद राहत अभियान।
– ऑपरेशन कैस्टर : मालदीव में वर्ष 2004 में आयी सुनामी के समय राहत अभियान।
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