#नकली_धर्मप्रचारकों_का_भंडाफोड़
आपको जिन शांकर मठो के प्रचारकों पर विश्वास है या अन्य जो संप्रदाय है उनके प्रचारकों पर विश्वास है ! वो प्रचारक स्वयं शांकर सिद्धांत भी या जो सो मत के सिद्धांत को जानते है?
अभी हम जैसे "उदाहरण के तौर" पर शंकराचार्य मठों के प्रचारको का ही करें तो,आपने कभी उनके साथ सैद्धांतिक बात की है?क्या वे लोग सामान्य शांकर सिद्धांत या सामान्य शास्त्रीय सिद्धांत को भी जानते है?
आप जनसामान्य उन लोगों का बड़ा ग्रुप दबदबा देखकर चकाचौंध देखकर जुड़ तो जाते बाद में आप भी उन लोगों जैसे *सिद्धांतविहीन* बन जाते है। आप किसी भी ५ प्रचारकों को यादृच्छिक रूप से पकड़िए और उन्हें सामान्य वैदिक धर्मसिद्धांत,शंकर परम्परा के सिद्धांत और शंकराचार्य मठों का संविधान पूछिए यह लोग वास्तव में कुछ नहीं जानते, इनको केवल जो सो सम्प्रदाय में जो अमुक लाभ पाने हेतु पहले सीनियर जुड़े होते है उनकी आज्ञा का पालन करना होता है,आप भावुक होकर हिन्दू धर्म को बचाने के लिए शीर्ष आचार्य का मुख देखकर जुड़ते है वो आपको मूर्ख समझते है एक और मुफ़्त का प्रचारक जुड़ गया। फ़िर आप जैसे सामान्य लोगों की भावनाओं का लाभ उठाकर यह मठ के गुट में भी रहते है और अपना विशेष गुट भी बनाते है ताकि स्वयं को मठ प्रशासन के सामने प्रतिभाशाली साबित किया जाए।
बड़े बड़े प्रकल्प चलाकर अन्य के प्रति अपनी मर्यादा का उल्लंघन एवं सम्प्रदाय के संविधान का अतिक्रमण ही इन लोगों का आशय है। पुनः इन लोगों को न कोई गुरु से लेना देना है न कोई सम्प्रदाय से न धर्म से न शास्त्र से न किसी भी प्रकार हिन्दुधर्म के सिद्धांत से, केवल आर्थिक उपार्जन के लिए मठ से लिंक बनाई हुई होती है, ताकि *मठ या संस्था के नेटवर्क* के दम पर उनके धंधे का भी प्रचार हो।यह लोग अपना धंधा चलाने के लिए मठ के नेटवर्क में सेंध करते है, और अपने निजीस्वार्थवश मठ के नेटवर्क का अपने लाभ के लिए उपयोग करते है, वास्तव में इन लोगों को शंकर सिद्धांत के साथ कोई लेनादेना नहीं होता केवल अपने स्वार्थवश अपने आप को मठ से जुड़ा या मठ का प्रचारक बताकर आपको उनके बिज़नेस की भी स्किम दे देतें है। यहीं आजकल न केवल शंकर सम्प्रदाय तमाम सम्प्रदाय तथा धार्मिक संस्थाओं में चलता है।
आगे सुनिए, इनके गुरुओं के आपके घर पदार्पण के भाव यह सुनिश्चित करते है(गुरु नहीं) जहां कम से कम एक लाख से लेकर पांच लाख तक कथित दक्षिणा के तौर पर मांगे जाते है।
मठ में रह रहे, शीर्ष आचार्य निःसंदेह ही विद्वान होते है किन्तु उनके अलावा कोई भी पांच - सात यादृच्छिक रूप से ब्रह्मचारी या भगवावस्त्र पहने व्यक्ति को पकड़िए उनको सामान्य हिन्दू शास्त्रीय सिद्धांत पूछिए,उनके मूल सम्प्रदाय के संविधान के सिद्धांत पूछिए उनकी ही गुरु परम्परा के १० पूर्व आचार्यो का नाम पूछिए। आपको स्वयं को पता चल जाएगा कि यह कितने योग्य है।
मठ या संस्थाओं के अंदर क्या चल रहा है, वहां शास्त्रीय नियमो का पालन हो रहा है कि नहीं? शीर्ष आचार्य के साथ घूमते तमाम लोग उनके साथ रहकर भी ज्ञान युक्त है कि नहीं? *वह लोग जातिय एवं आचार के परीक्षण से ब्रह्मचारीत्व या सन्यासी बनने के लायक भी है या नहीं।*
कुछ तो अपनी तमाम मर्यादाओं का उल्लंघन कर चुके है। जो पटल पर ला भी नहीं सकते।
इनसे सामान्य जुड़े लोगों या अनुयायियों के साथ कदाचित कोई जिम्मेदार व्यक्ति के द्वारा गलत भी होता है तो भी वो बेचारे बंध मुह सह लेते है। मठ के आंतरिक लोग में भावना हो न हो बाहर से जो जुड़े है वो लोकलज्जा और मठ की मर्यादा, मान बने रहे ऐसी भावना से मौन का सेवन करते है।
अन्य सम्प्रदाय मैं जैसे बोला यही एक जैसा ही पैटर्न है। विदेशों में धनलालसा से मंदिर बनाए जाते है, अपनी अमर्यादित भक्तो की संख्या के कारण राजनीति दलों के भी यह लोग अनुगमन करते है की आपके जो सो संस्था या सम्प्रदाय के इतने अनुयायी है आपको हमारी सरकार से यह वो लाभ मिलेंगे ऐसा कर वोट बटोरे जाते है।
ऐसे भी बहुत यानी बहुत सारे पहलू है जो सार्वजनिक तौर पर नहीं बोले जाते जिनके अनुभव में आया वे स्वयं ही जानते है। किंतु लोकलज्जा से भी वो मौन रहते है।
*हिन्दू धर्म को बचाना है तो आवाज़ उठाइए और जहां शास्त्र विरुद्ध का कृत्य या आप के साथ निजी तौर पर ऐसी घटना हुई तो सार्वजनिक करिए ताकि और भी जनसामान्य लोग यह जाल से बचे।*
अब आपको क्या करना है। आचार्य चाणक्य का वचन है,वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः।
यह मत भूलिए परम्परा,सम्प्रदाय,धार्मिक संस्थाओं आदि के समकक्ष कुलीन ब्राह्मण की गृहस्थ परम्परा है, और सन्यासी आपके दूसरे क्रम के गुरु है,पहले क्रम के गुरु हम सब कुलीन गृहस्थ ब्राह्मण है यही शास्त्र सिद्धांत है। यही #निर्णय है। केवल योग्य गृहस्थ ब्राह्मण गुरु के अभाव में ही अन्य परम्परा का आलंबन ले सकते है तब तक आपके प्रथम गुरु गृहस्थ ब्राह्मण है। चुप न रहें बोले आपके साथ अगर कोई छल हुआ है तो सामने
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