Channel: सुविचारों का दरिया😇
मुझे नहीं मालूम,
नहीं मालूम दुनियां क्यों है, मैं कौन हूं और क्या है ये सब,
नहीं मालूम इश्क़ क्यों होता है, तबाही क्यों जरूरी है, शराबें क्यों सरेआम बिकती हैं,
नहीं मालूम क्यों अपनों से ज्यादा ज़ख्म कोई दे नहीं सकता, क्यों नहीं नहीं करते हां हो जाती हैं बातें,
क्यों इंसान इंसाफ अदालतों में न मिलने के बाद ख़ुदा पर टाल देता है, क्या ज़रूरी है वहां इंसाफ़ हो और अगर नहीं हुआ तो?
नहीं मालूम कि कोई सच में सरहदें बनीं थीं की सफेदपोशों ने बनाई थी कुर्सी की चाह में,
नहीं मालूम की जो सुना उसपर यकीन कैसे न करूं, जो देखा वो गलत कैसे निकला,
कुछ नही मालूम, कुछ भी नहीं मालूम,
मगर मालूम है कि हर साल नई सड़क टूट हो जाती है,
हर नई इमारत जल्दी ही गिरेगी, बारिश में टपकेगी,
मालूम है सरकारें ऐसी ही होती हैं,
मुझे मालूम है,
मुझे ही नहीं इत्तेफाकन सबको मालूम है कि चुनाव आते ही जाति, धर्म, संप्रदाय, सरहद, भाषा, रंग, मिट्टी, भूख, गरीबी, मुफ़्त दान, राशन, पेंशन, गद्दार, देशभक्ति, आज़ादी, स्त्री को सम्मान, किसान सुनाई देता ही है,
कुछ नया नहीं,
ये सबको मालूम है,
मुझे भी उसी तरह मालूम है,
इमारतें जो बनीं कई सदियों पहले वो हैं ठोस, दमदार,
बयां करती अपनी हुकूमत की मजबूती,
आज की नहीं है ना की शिलान्यास के साल ही गिर जाएं,
पुराने महल टिके हैं,
उनके नारे ज़िंदा हैं,
उनकी बड़ी बड़ी बातें ताज़ा हैं,
कहानियां अमर हैं,
इतिहास गहरा है,
जो नहीं है वो उनका सपना,
मुझे पता है,
आपको भी है,
सबको पता है,
पर कोई बात नहीं,
आदत हो गई है,
क्योंकि ऐसा तो होता ही है,
शायद होता आया है,
कोई बात नहीं,
भूल जाना आसान है,
मुझे पता है।
नहीं मालूम दुनियां क्यों है, मैं कौन हूं और क्या है ये सब,
नहीं मालूम इश्क़ क्यों होता है, तबाही क्यों जरूरी है, शराबें क्यों सरेआम बिकती हैं,
नहीं मालूम क्यों अपनों से ज्यादा ज़ख्म कोई दे नहीं सकता, क्यों नहीं नहीं करते हां हो जाती हैं बातें,
क्यों इंसान इंसाफ अदालतों में न मिलने के बाद ख़ुदा पर टाल देता है, क्या ज़रूरी है वहां इंसाफ़ हो और अगर नहीं हुआ तो?
नहीं मालूम कि कोई सच में सरहदें बनीं थीं की सफेदपोशों ने बनाई थी कुर्सी की चाह में,
नहीं मालूम की जो सुना उसपर यकीन कैसे न करूं, जो देखा वो गलत कैसे निकला,
कुछ नही मालूम, कुछ भी नहीं मालूम,
मगर मालूम है कि हर साल नई सड़क टूट हो जाती है,
हर नई इमारत जल्दी ही गिरेगी, बारिश में टपकेगी,
मालूम है सरकारें ऐसी ही होती हैं,
मुझे मालूम है,
मुझे ही नहीं इत्तेफाकन सबको मालूम है कि चुनाव आते ही जाति, धर्म, संप्रदाय, सरहद, भाषा, रंग, मिट्टी, भूख, गरीबी, मुफ़्त दान, राशन, पेंशन, गद्दार, देशभक्ति, आज़ादी, स्त्री को सम्मान, किसान सुनाई देता ही है,
कुछ नया नहीं,
ये सबको मालूम है,
मुझे भी उसी तरह मालूम है,
इमारतें जो बनीं कई सदियों पहले वो हैं ठोस, दमदार,
बयां करती अपनी हुकूमत की मजबूती,
आज की नहीं है ना की शिलान्यास के साल ही गिर जाएं,
पुराने महल टिके हैं,
उनके नारे ज़िंदा हैं,
उनकी बड़ी बड़ी बातें ताज़ा हैं,
कहानियां अमर हैं,
इतिहास गहरा है,
जो नहीं है वो उनका सपना,
मुझे पता है,
आपको भी है,
सबको पता है,
पर कोई बात नहीं,
आदत हो गई है,
क्योंकि ऐसा तो होता ही है,
शायद होता आया है,
कोई बात नहीं,
भूल जाना आसान है,
मुझे पता है।
अगर किसी को आपकी सही सलाह भी अच्छी न लगे तो उसे दुबारा सलाह मत देना! समय उसे तबाह करके सीख देगा.!
समंदर की लहरें जब किनारे पर पड़ी सूखी रेत से टकराती है, कुछ को भीगो जाती है तो कुछ को साथ बहा ले जाती है. हम सभी के जीवन में प्रेम भी बस इसी तरह आता है, किसी को साथ ले जाता है तो किसी को किनारे पर छोड़ जाता है, कुछ प्रेम में लीन हो जाते कुछ प्रतीक्षा करते रह जाते है ❤️❤️
यदि आप हाथ पर हाथ रखकर
अच्छे वक़्त का इंतजार कर रहें हैं,
तो ध्यान रहे,
कि अच्छा वक्त भी टांग पर टांग रखकर
आपके मेहनत का इंतजार कर रहा है..!!🖤
अच्छे वक़्त का इंतजार कर रहें हैं,
तो ध्यान रहे,
कि अच्छा वक्त भी टांग पर टांग रखकर
आपके मेहनत का इंतजार कर रहा है..!!🖤
मैं तमाम दिन ये सोचता रहा कि कोई आएगा कुछ कहेगा तो बेहतर हो जाएगा मेरा मन,
मैं सोचने लगूंगा कि आज का दिन अच्छा होगा और बना लूंगा कुछ काम की चीज़े जिसे देखकर रात को लगे कि आज कुछ किया,
मगर नहीं हुआ ऐसा,
खुद ही को ख़ुद से समझाना पड़ा और समझना पड़ा ख़ुद को कि एकांत है दुनियां,
हां ये अच्छा रहा कि कुछ लोग फिक्रमंद दिखे कुछ ने हौसला देने का सोचा,
ये दिन गुज़र गया काम तो नहीं हुआ कुछ मगर सोच बेहतर हुई,
काश ये एक दिन एक दिन का हो होता,
इस एक दिन के इंतज़ार में हफ़्ते महीने और सालों लग गए सिर्फ़ ये समझने में की कोई नहीं आएगा अपनें से ही करना है जो भी करना है,
ऐसा नहीं की लोग अपनें नहीं हैं, हैं,
पर वो भी तो लड रहे हैं अपनी लड़ाईयां,
आप भी लड़ रहे हैं मैं भी हम सब कर रहे हैं अदा अपना अपना किरदार,
शायद हम बच्चे हैं मन से मगर ये मानना होगा की बचपन अब नहीं रहा कि ज़रा से परेशान होते ही कोई आ जाएगा और दूर कर देगा वो परेशानी का कारण,
शायद अब बड़े होने की सज़ा मिल रही है मगर ये सज़ा नहीं समझ है जिसे समझकर आगे बढ़ना है और बढ़ते जाना है,
आप मैं और हम जैसे तमाम लोग जूझ रहे हैं अपनी अपनी समस्याओं से,
हमें ज़रूरत है एक दूसरे के साथ की बात की , अगर समय हो तो कहें अपनी बात, दोनों को अच्छा लगेगा।
मैं सोचने लगूंगा कि आज का दिन अच्छा होगा और बना लूंगा कुछ काम की चीज़े जिसे देखकर रात को लगे कि आज कुछ किया,
मगर नहीं हुआ ऐसा,
खुद ही को ख़ुद से समझाना पड़ा और समझना पड़ा ख़ुद को कि एकांत है दुनियां,
हां ये अच्छा रहा कि कुछ लोग फिक्रमंद दिखे कुछ ने हौसला देने का सोचा,
ये दिन गुज़र गया काम तो नहीं हुआ कुछ मगर सोच बेहतर हुई,
काश ये एक दिन एक दिन का हो होता,
इस एक दिन के इंतज़ार में हफ़्ते महीने और सालों लग गए सिर्फ़ ये समझने में की कोई नहीं आएगा अपनें से ही करना है जो भी करना है,
ऐसा नहीं की लोग अपनें नहीं हैं, हैं,
पर वो भी तो लड रहे हैं अपनी लड़ाईयां,
आप भी लड़ रहे हैं मैं भी हम सब कर रहे हैं अदा अपना अपना किरदार,
शायद हम बच्चे हैं मन से मगर ये मानना होगा की बचपन अब नहीं रहा कि ज़रा से परेशान होते ही कोई आ जाएगा और दूर कर देगा वो परेशानी का कारण,
शायद अब बड़े होने की सज़ा मिल रही है मगर ये सज़ा नहीं समझ है जिसे समझकर आगे बढ़ना है और बढ़ते जाना है,
आप मैं और हम जैसे तमाम लोग जूझ रहे हैं अपनी अपनी समस्याओं से,
हमें ज़रूरत है एक दूसरे के साथ की बात की , अगर समय हो तो कहें अपनी बात, दोनों को अच्छा लगेगा।
मुर्ख बनाना सीखो
लोगों को ऐसे दिखाओ की तुम्हारा कोई उदेश
नहीं है क्योंकि लोग आपकी प्रगति देखते
ही आपको पीछे खींचने में देर नहीं लगाते
इसलिए किसी को भी अपने लक्ष्य न बताएं
उन्हें सीधा अपना रिजल्ट दिखाए।
माँ की कहानी थी
परीयों का फसाना था,
बारिश में कागज की नाव थी,
बचपन का वो हर मौसम सुहाना था,
रोने की वजह ना थी,
ना हँसने का बहाना था,
क्यों हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो हाँ
वो बचपन का ही जमाना था
परीयों का फसाना था,
बारिश में कागज की नाव थी,
बचपन का वो हर मौसम सुहाना था,
रोने की वजह ना थी,
ना हँसने का बहाना था,
क्यों हो गए हम इतने बड़े,
इससे अच्छा तो हाँ
वो बचपन का ही जमाना था
कोई चाहे कितना भी महान क्यों ना हो जाए, पर कुदरत कभी भी किसी को महान बनने का मौका नहीं देती।
कंठ दिया कोयल को, तो रूप छीन लिया।
रूप दिया मोर को, तो ईच्छा छीन ली।
दि ईच्छा इन्सान को, तो संतोष छीन लिया।
दिया संतोष संत को, तो संसार छीन लिया।
दिया संसार चलाने देवी-देवताओं को, तो उनसे भी मोक्ष छीन लिया।
दिया मोक्ष उस निराकार को, तो उसका भी आकार छीन लिया।
मत करना कभी भी ग़ुरूर अपने आप पर
'ऐ इंसान', मेरे रबने तेरे और मेरे जैसे कितने मिट्टी से बनाके मिट्टी में मिला दिए।
कंठ दिया कोयल को, तो रूप छीन लिया।
रूप दिया मोर को, तो ईच्छा छीन ली।
दि ईच्छा इन्सान को, तो संतोष छीन लिया।
दिया संतोष संत को, तो संसार छीन लिया।
दिया संसार चलाने देवी-देवताओं को, तो उनसे भी मोक्ष छीन लिया।
दिया मोक्ष उस निराकार को, तो उसका भी आकार छीन लिया।
मत करना कभी भी ग़ुरूर अपने आप पर
'ऐ इंसान', मेरे रबने तेरे और मेरे जैसे कितने मिट्टी से बनाके मिट्टी में मिला दिए।
जब मन कमजोर होता है...
परिस्थितियां समस्या बन जाती हैं।
जब मन स्थिर होता है...
परिस्थितियां चुनौती बन जाती हैं।
जब मन मजबूत होता है...
परिस्थितियां अवसर बन जाती हैं...
🥀🥀
परिस्थितियां समस्या बन जाती हैं।
जब मन स्थिर होता है...
परिस्थितियां चुनौती बन जाती हैं।
जब मन मजबूत होता है...
परिस्थितियां अवसर बन जाती हैं...
🥀🥀
कुछ यार मतलबी थे ,
कुछ मै भी मतलबी था
मतलब कि दुनिया में ,
बस एक तुझको(माँ) छोड़ कर
बाकी सब मतलबी थे
कुछ यार फरेबी थे ,
कुछ मै भी फरेबी था
फरेब इस जहान में था,
या ये जहान ही फरेबी था
कुछ यार दिल में है,
कुछ के दिल में हम है
उन्होंने दिल में समाया है ,
या हम ही ने उनको दिल में समा लिया
कुछ यार अजनबी है,
कुछ हम भी अजनबी है
यूं तो बात नहीं होती कुछ से ,
मगर कुछ वो कल भी हमारे थे ,
और आज भी हमारे है
कुछ मै भी मतलबी था
मतलब कि दुनिया में ,
बस एक तुझको(माँ) छोड़ कर
बाकी सब मतलबी थे
कुछ यार फरेबी थे ,
कुछ मै भी फरेबी था
फरेब इस जहान में था,
या ये जहान ही फरेबी था
कुछ यार दिल में है,
कुछ के दिल में हम है
उन्होंने दिल में समाया है ,
या हम ही ने उनको दिल में समा लिया
कुछ यार अजनबी है,
कुछ हम भी अजनबी है
यूं तो बात नहीं होती कुछ से ,
मगर कुछ वो कल भी हमारे थे ,
और आज भी हमारे है
जब पत्थर तोड़कर
भगवान बन सकते हैं,
तो फिर लोग घमंड तोड़कर
इंसान क्यों नहीं बनते..!
💯🌿
🌺🌸 प्रातः वंदन 🌸🌺
परिवर्तन प्रकृति का नियम है
इसलिए जो पीछे छूट गया
उसका शोक मानाने से बेहतर है
जो आपके पास अभी है
उसका आनंद उठाओ...!!
कभी कभी इतनी बैचैनी होती है
कि लगता है ।
काश ये शाम होती ही ना।
शाम से ये बैर हमेशा से नहीं रहा
बल्कि तुम्हारे जाने के बाद
ये तब्दीली आई है
शाम काटने को दौड़ती है
ऐसा लगता है कि बस ठहर गया है वक्त
तुम लौट आओ कि मुझे फिर से
एक खुशनुमा शाम गुजारनी हैं तुम्हारे साथ।
कि लगता है ।
काश ये शाम होती ही ना।
शाम से ये बैर हमेशा से नहीं रहा
बल्कि तुम्हारे जाने के बाद
ये तब्दीली आई है
शाम काटने को दौड़ती है
ऐसा लगता है कि बस ठहर गया है वक्त
तुम लौट आओ कि मुझे फिर से
एक खुशनुमा शाम गुजारनी हैं तुम्हारे साथ।
जिन्होंने देखा है अपनी मां को
पिता की पुरानी कमीज़ों से
ब्लाऊज़ सिल कर पहनते,
वे जानती हैं तनख्वाह की
एक एक पाई जोड़कर रखना,
क्या अहमियत रखता है !
जिन्होंने देखा है अपनी मां को
सब्जी-भाजी का मोल भाव करते,
मुट्ठी में बंधे पैसों को मन ही मन गिनते,
वे जानती हैं,
डायरी में हिसाब जोड़ते वक्त आए
दस रुपए का फर्क ढूंढ पाना
क्या अहमियत रखता है !
जिन्होंने देखा है अपनी मां को
सबसे आखिर में थाली लगाते,
बच्चों की छोड़ी तरकारी चाव से खाते,
वे जानती हैं, चादर के आकार
और पैरों को पसारने के बीच
सामंजस्य बैठाना
क्या अहमियत रखता है !
अक्सर स्त्रियों का बार्गेनिंग को लेकर उपहास उड़ाया जाता है, लेकिन शायद इस मोलभाव को उनका स्वभाव बनने में सदियाँ लगी हैं........
🌹🙏
पिता की पुरानी कमीज़ों से
ब्लाऊज़ सिल कर पहनते,
वे जानती हैं तनख्वाह की
एक एक पाई जोड़कर रखना,
क्या अहमियत रखता है !
जिन्होंने देखा है अपनी मां को
सब्जी-भाजी का मोल भाव करते,
मुट्ठी में बंधे पैसों को मन ही मन गिनते,
वे जानती हैं,
डायरी में हिसाब जोड़ते वक्त आए
दस रुपए का फर्क ढूंढ पाना
क्या अहमियत रखता है !
जिन्होंने देखा है अपनी मां को
सबसे आखिर में थाली लगाते,
बच्चों की छोड़ी तरकारी चाव से खाते,
वे जानती हैं, चादर के आकार
और पैरों को पसारने के बीच
सामंजस्य बैठाना
क्या अहमियत रखता है !
अक्सर स्त्रियों का बार्गेनिंग को लेकर उपहास उड़ाया जाता है, लेकिन शायद इस मोलभाव को उनका स्वभाव बनने में सदियाँ लगी हैं........
🌹🙏
कभी अकेला चलना पड़े तो डरिये
मत क्योंकि श्मशान, शिखर
और सिंहासन पर इंसान
अकेला ही होता है...!
मत क्योंकि श्मशान, शिखर
और सिंहासन पर इंसान
अकेला ही होता है...!
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